प्रीत पराई ,अपनों से लड़ाई ।
मैं देर करती नहीं……… देर हो जाती है।
*पानी बरसा हो गई, आफत में अब जान (कुंडलिया)*
‘ विरोधरस ‘ [ शोध-प्रबन्ध ] विचारप्रधान कविता का रसात्मक समाधान +लेखक - रमेशराज
जिंदगी के तूफानों में हर पल चिराग लिए फिरता हूॅ॑
बड़ा होने के लिए, छोटों को समझना पड़ता है
ज़िन्दगी लाज़वाब,आ तो जा...
डोरी बाँधे प्रीति की, मन में भर विश्वास ।
Some people are just companions
कहां की बात, कहां चली गई,
मित्रता की परख
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी "