"रंग भले ही स्याह हो" मेरी पंक्तियों का - अपने रंग तो तुम घोलते हो जब पढ़ते हो
एक महान भविष्य के लिए एक महान अतीत की आवश्यकता नहीं होती है,
ओ मेरे दाता तेरा शुक्रिया ...
वर्तमान सरकारों ने पुरातन ,
Practice compassionate self-talk
समझाते इसको को हुए, वर्ष करीबन साठ ।
लड़ाई में भी परम शांति, निहित है,
*काले-काले बादल नभ में, भादो अष्टम तिथि लाते हैं (राधेश्यामी
कृष्ण प्रेम की परिभाषा हैं, प्रेम जगत का सार कृष्ण हैं।
मधुमास
डॉ राजेंद्र सिंह स्वच्छंद
- मेरा जीवन हो गया अब पूर्णत साहित्य को समर्पित -
ग़ज़ल _ याद आता है कभी वो, मुस्कुराना दोस्तों ,