।।श्री सत्यनारायण व्रत कथा।।प्रथम अध्याय।।
एक समय नैमीसारण्य तीर्थ में, शौनकादि ऋषि पधारे।
महर्षि सूत का वंदन कर,अति उत्तम वचन उचारे।।
हे महा मुनि आप शास्त्र मर्मज्ञ और वेद विद्या विद्वान हैं।
एक प्रश्न है मन मुनि श्रेष्ठ,आप कर सकते समाधान हैं
सभी उपस्थित ऋषियों ने, सूतजी महाराज से प्रश्न किया।
लौकिक और पारलौकिक दुखों में, हे मुनिवर कैसे जाए जिया।।
वेद विद्या रहित मनुज,कलयुग में कैसे तरेंगे?
कैसे ईश्वर को प्राप्त करेंगे,कैसे भक्ति करेंगे?
नहीं योग जप तप नेम नियम, नहीं यज्ञ आचार विचार।
कैसे होगा इस कलयुग में, ऐसे दीनों का उद्धार।।
माया मोह जनित कष्टों से,हे प्रभु कैसे छुटकारा हो।
पाप और दुष्कर्म जनित दुखों का, कैसे कष्ट निवारण हो।
किस उपाय से सुखी हों सब, जीवन में उजियारा हो।।
सूत जी बोले हे महाभाग, आपने उत्तम प्रश्न किया है।
यही प्रश्न नारद जी ने, वैकुंठ धाम में श्री हरि से किया था।।
श्री हरि और नारदजी का, पावन संवाद सुनाता हूं।
सत्य नारायण व्रत कथा की, पावन महिमा गाता हूं।।
एक बार नारद मुनि भ्रमण पर, मृत्यु लोक आए थे।
सत कर्मों से हीन मनुज को, दुखी देख चकराए थे।।
कैसे कष्ट मिटे जन जन का, प्रश्न हृदय में लाए थे।
समाधान को नारद जी, विष्णु लोक सिधाए थे।।
हे शंख चक्र गदाधर श्रीहरि, बारंबार प्रणाम है।
हे जगत पिता पालक पोषक,आप कृपा सिंधु भगवान हैं।।
हे सुखकारी दुखहारी भगवन, आप दीनों के दया निधान हैं।
आपकी करुणा और कृपा से, सब जीवों का कल्याण है।।
सुनकर मंगल गान स्तुति,नारद को गले लगाया।
आदर और सम्मान दिया ,नारद को पास बिठाया।।
तीन लोक के स्वामी ने,नारद का मान बढ़ाया।।
नारद दर्शन कर तृप्त हुए, नयनों से अमृत पान किया।
प्रेम मगन नारद जी ने,मन वीणा से गान किया।।
श्री हरि बोले हे मुनिवर, आप कहां से आए हैं।
किस प्रयोजन से नारद जी, लोक हमारे आए हैं।।
नारद बोले हे भगवन्, मैं मृत्यु लोक गया था।
देख धरा पर दुखी मनुष्य, हृदय सहम गया था।।
लोभ मोह माया से मोहित, कष्टों में हैं नर नारी।
असत कर्म कलि के प्रभाव ने, मनुज की गति बिगारी।।
दुष्कर्मों के पापों को, भोग रही दुनिया सारी।।
नहीं योग और जप तप है, नहीं नियम आचार विचार।
असत कर्म कलि के प्रभाव से,मंद पड़ रहा सत आचार।।
हे नाथ उपाय बताएं ऐसा,जो शीघ्र मनुज का कष्ट हरे।
सुख समृद्धि शांति और मनचाहा वर प्रदान करे।।
बोले श्री हरि हे नारद जी, आपने उत्तम प्रश्न किया है।
लोक कल्याण कामना से, मैंने संज्ञान लिया है।
हे नारद इस कलयुग में,सत्य का व्रत बतलाता हूं।
सतव्रतऔर सदाचरण से,सारे कष्ट मिटाता हूं।।
सत्य की महिमा बहुत है नारद, “सत्य” मेरा ही नाम है।
सतव्रत और सत्कर्म मनुज को,ले आते मेरे धाम हैं।।
सत्यव्रत धारी मनुज धरा पर,सब सुख समृद्धि पाते हैं।
पूरी होती है अभिलाषाएं, जीवन सुखद बनाते हैं।।
सदाचार और सत्य से अपने,सहज मुझे पा जाते हैं।।
सत् शांति और दया क्षमा,चार धर्म के लक्षण हैं।
सत्य प्रेम करुणामय जीवन, ऐसे नर-नार विलक्षण हैं।।
सत्य प्रेम करुणा का जो जन,जो ध्यान हृदय में धरते हैं।
धर्म अर्थ और काम मोक्ष,भव सागर से तरते हैं।।
सत्य नारायण व्रत कथा, सदाचरण की पोथी है।
सत पथ पर चलने वालों की,जीत हमेशा होती है।।
सतपथ और सत प्रकाश से, अज्ञान मोह हट जाते हैं।
मुक्ति मिलती है सभी दुखों से, कष्ट सभी कट जाते हैं।।
प्रेम और श्रद्धा भक्ति से,जो जन मुझको ध्याते हैं।
सत व्रत धारण और पूजन से,शुभ अभीष्ट पा जाते हैं।।
सुख शांति से जीवन जी कर,लोक में मेरे आते हैं।।
नहीं मुहूर्त कोई इस व्रत का है,जिस दिन जो संकल्प करे।
सह कुटुम्ब परिवार सहित,पूजन अर्चन और ध्यान धरे।।
धारण करे सत्य हृदय में, सदाचरण से सदा चले।।
भाव से नैवेद्य चढ़ाए, चरणामृत का पान करे।
यथा शक्ति प्रसाद भोग,यथा शक्ति धन दान करे।।
सत्य रखे कथनी-करनी , सत्य का निशदिन गान करे।
नृत्य गीत संगीत कीर्तन,सतसंग का अमृत पान करे।।
हृदय में पावन नाम इष्ट का, प्रेम सहित गुणगान करे।।
सत का व्रत और सदाचार,हर दुख निवारण कर देगा।
लोभ मोह अज्ञान अविद्या, जीवन के कल्मष हर लेगा।।
सत्य नारायण कथा सत्य की, पावन गीत सुनाता हूं।
सत्य नारायण कथा सत्य की, बन्धु तुम्हें सुनाता हूं।।
सत्य नारायण का पूजन विधान, एक समग्र पूजन है।
धरती माता गगन सहित,सब देवों का स्मरण है।
गौरी गणेश सोडष मात्रिका,नव ग्रहों का पूजन है।
सप्तसागर पवित्र तीर्थ नदी,कलश में सब संयोजन है।।
सत्यनारायण का पूजन समग्र, सृष्टा सृष्टि का पूजन है।
भारत के घर घर में होता,हर अवसर पर आयोजन है।।
वसुधैव कुटुम्बकं की भावनाओं से ओत-प्रोत जीवन है।।
धन वैभव सुख शांति समृद्धि, और मोक्ष का साधन है।
सत्य नारायण व्रत और पूजन, सदाचरण का पालन है।।
।।इति श्री स्कन्द पुराणे रेवा खण्डे सत्य नारायण व्रत कथायां प्रथमो अध्याय सम्पूर्णं।।
।।बोलिए श्री सत्यनारायण भगवान की जय।।