फ़िल्म और हक़ीक़त
फ़िल्में हक़ीक़त
नहीं होतीं
और हक़ीक़त
फिल्मी नहीं होती।
फ़िल्मों में किरदारों का
अपना कुछ नहीं होता
सिवाय उनके होने के।
उधार के
वार्तालाप,
वेशभूषा,
घटनाएं,
और एक
सोंचीं
समझी अंत ।
जबकि
हक़ीक़त
होती है
अक्ल्पीत
और
अनंत।
-अजय प्रसाद