ज़िन्दगी भर मैं सफ़र में रहा
ज़िन्दगी भर मैं सफ़र में रहा
तन्हा रहा फिर भी जिंदा रहा
ज़िन्दगी बशर कर दी उनके इंतज़ार में
उनके आने की आस लिये जिन्दा रहा
हमनें कब माना था उन्हें अज़नबी
उनकी नज़र में अज़नबी बना रहा
कब देगी दस्तक़ दिल की खिड़कियों में
उनके लिए सदा दरवाज़ा खुला रहा
तमाम उम्र काट दी उनकी यादों तले
हर बार मर कर भी जिंदा होता रहा
आज नही तो कल बोलेगी, की तुम मेरे हो
मैं सदा उसके दो बोल सुनने को तरसता रहा
वो आयी कुछ इस तरह मेरी ज़िन्दगी में
आँखे खोली तो मुझे सपना खलता रहा
ज़िन्दगी भर हमसफ़र की तलाश में
ज़िन्दगी का सफर यूं ही कटता रहा
तमाम उम्र मैं ज़िंदा रहा तो रहा
अज़नबी के घर में पलता रहा
भूपेंद्र ने गुज़ार दी ज़िन्दगी यूं ही तलाश में
अज़नबी की यादों का सफर चलता रहा
भूपेंद्र रावत
13।08।2017