ज़िन्दगी नही, ख्वाब बन गयी है
ज़िन्दगी नही, ये अब ख्वाब बन गयी है।
मेरे किये कर्मों का ये हिसाब बन गयी है।
बड़े सवाल किया करता था मैं लोगो से।
आज मेरी जिंदगी एक जवाब बन गयी है।
चंद पन्नों में सिमट सी गयी है मानो अब।
ये जिंदगी एक स्कूल की किताब बन गयी है।
हर कदम पर मेरे कोई न कोई सीख रहती है।
ये जिंदगी आजकल हाजिरजवाब बन गयी है।
अंजनी ‘कुमार’ मिश्रा