ग़ज़ल
कोई नग़्मा दिया तूने ख़ुशी से उसको गाया है
सदा ही ज़िन्दगी हमने तेरा रिश्ता निभाया है
कभी रोते हुए ढूँढी ख़ुशी की भी वजह कोई
कभी हँसते हुए हमने उदासी को छुपाया है
घड़ी भर को अचानक से सुकूँ क्यूँ मिल गया मुझको
घड़ी भर ही सही लेकिन उसे कुछ याद आया है
बुलाये बिन ये आ बैठा पता किसने दिया ग़म को
किधर जाके मगर भटकी ख़ुशी को जब बुलाया है
कभी हँसते हुए देखो किसी को बेतहाशा तुम
समझ जाना कि दुनिया ने उसे कितना सताया है
न जाने के कहन था क्या, न जाने क्या कहा मैंने
छुपाया है न जाने क्या, न जाने क्या नुमाया है
सुरेखा कादियान ‘सृजना’