$ग़ज़ल
32/ बहरे हज़ज़ मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन×4
1222/1222/1222/1222
हज़ारों ग़म मिलेंगे इस ज़माने में रुलाने को
नहीं डरना बनो क़ाबिल इन्हें ख़ुद ही हराने को/1
नदी सागर बने पर्वत सभी अपनी सदाक़त से
खिले हैं फूल शूलों में मुहब्बत से हँसाने को/2
शिकायत ग़ैर से कैसी कमी ख़ुद की तलाशो तुम
सजाकर सुर सुनाओ ज़िंदगी के इस तराने को
निगाहें पाक रखना तुम मिलाओ प्यार में जिससे
असर दिल का दिखाती हैं तुम्हारा ये ज़माने को/4
तिज़ारत छोड़ दे प्यारे मुहब्बत के सफ़र में तू
उजाड़े ये खिले गुलशन से महके हर घराने को/5
मिटा दें फासले अब हम दिलों से ये ज़रूरत है
मुहब्बत से ज़ुदा होते यहाँ आँगन बचाने को/6
तुम्हारे साथ से प्रीतम मेरा जीवन सुहाना है
लगाए चार तुमने चाँद मिल मेरे फ़साने को/7
#आर.एस. ‘प्रीतम’
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