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1 Aug 2021 · 1 min read

$ग़ज़ल

#ग़ज़ल
लड़ना नहीं रहो मिलके प्यार से यहाँ
ये ज़िन्दग़ी हँसे दिल शृंगार से यहाँ//1

ज़न्नत यहीं है दोजख़ के द्वार भी यहीं
समझो इन्हें ख़ुशी ग़म के सार से यहाँ//2

नफ़रत नहीं करो हल हर भूल का ख़ुदी
चाहत भरे खिलें दिल दीदार से यहाँ//3

ये ज़िंदगी मिली हमको मौज़ के लिए
बेकार मत करो इसको रार से यहाँ//4

इक दिल सभी लिए ग़म सबके समान हैं
फिर फैसले अलग किस इज़हार से यहाँ//5

आदत बुरी हमें ग़म की ओर ले चली
भटके नहीं कभी हम इंकार से यहाँ//6

‘प्रीतम’ कहो सदा हक की बात जोश में
रोती रहे ज़ुबान दबी भार से यहाँ//7

#आर.एस. ‘प्रीतम’
सर्वाधिकार सुरक्षित ग़ज़ल

बहरे मज़ारिअ मुसमन अख़रब
मकफूफ़ मकफ़ूफ़ महजूफ़
मफ़ऊलु फ़ाइलातु मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
221/2121/1221/212

1 Like · 4 Comments · 272 Views
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