ग़ज़ल
गमों में मुस्कराना हो गया है
दिल ए दुश्मन जलाना हो गया है।
दो पैंतरे क्या सीख लिये मैने
दोस्त अब सारा जमाना हो गया है।
शुरू आँखें दिखाना कर दिया मैंने
सबका नज़रें चुराना हो गया है।
उसे नाज़ है उसकी चौखट पर
दोस्त का सर झुकाना हो गया है।
मिलना मक़सद है चुनाव अगला
मुहब्बतों का बहाना हो गया है।
दिल की दिल में है क्या कहें किससे
प्यार किस्सा पुराना हो गया है।
खुश बहुत है दोस्त आज बचपन का
मेरा आँसू बहाना हो गया है।
संजय नारायण