ग़ज़ल
जिस दिन मुझको साँसों ने ठुकराया था
उस दिन मुझसे मिलने वो भी आया था
जिन राहों में साथ चले थे हम दोनों
उन राहों की माटी वो ले आया था
नम आँखों से चूमा था मेरा माथा
हाथों में ‘वो कंगन’ भी पहनाया था
मुझको खोकर जाने क्या पाया उसने
ख़ुद को खोकर मैंने उसको पाया था
यादों के जुगनू सिरहाने रख छोड़े
मुझको उसने फिर से आज सताया था
हाथों में अब हाथ लिये क्यूँ वो बैठा
उसने तो हर दम ही हाथ छुड़ाया था
जिस दर ने था उसके कदमों को चूमा
मेरे बिन उस दर वो आज पराया था
महफ़िल में जब बात इबादत की निकली
तब उसने फिर मेरा गीत सुनाया था
सुरेखा कादियान’सृजना’