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1 Jun 2018 · 1 min read

ग़ज़ल

जहन में वो तो ख्वाब जैसा है
वो है बदन भी गुलाब जैसा है

बंद आँखों से पढ़ भी सकता हूँ
तेरा चेहरा किताब जैसा है

लोग प्यार से दीवाना कहते है
मेरे लिए ये ख़िताब जैसा है

मेरी पलके झुकी है सजदे में
दिल भी गंगा के आब जैसा है

हर घड़ी ज़िक्र तेरा ही करता रहूँ
ये नशा भी शराब जैसा है

अर्पित शर्मा अर्पित

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