Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
23 Aug 2023 · 4 min read

साधु की दो बातें

साधु की दो बातें

वेणुपुर नामक गाँव में दो भाई रहते थे। नाम था उनका- दुर्जन और सुजन। दुर्जन जितना दुष्ट था, सुजन उतना ही नेक और सीधा सादा, किंतु वह बहुत ही गरीब था। दुर्जन, सुजन की गरीबी पर खूब हँसता था। वह भले ही दूसरों को रुपया, पैसा आदि उधार में दे देता किंतु अपने छोटे भाई सुजन को फूटी-कौड़ी भी नहीं देता था।
एक दिन सुजन की पत्नी ने अपने पति से कहा- ‘‘क्यों जी हम कब तक इस गाँव में भूखों मरेंगे। यहाँ तो ठीक से मजदूरी भी नहीं मिलती।’’
‘‘तो तुम्हीें बताओ ना कि मैें क्या करूँ।’’ – सुजन ने लम्बी साँस खींचते हुए कहा।
‘‘क्यों न हम शहर चल देते। वहाँ कोई न कोई काम तो मिल ही जाएगा।’’ – पत्नी ने कहा।
सुजन शहर में कोई रोेजगार तलाशने का निश्चय कर अगले ही दिन पत्नी द्वारा बनाई रोटी और गुड़ की पोटली लेकर शहर की ओर निकल पड़ा।
अभी उसने जंगल में प्रवेश ही किया था कि उसे एक कुटिया दिखाई पड़ी। वहाँ एक वृद्ध साधु नीचे चटाई बिछाकर लेटे हुए थे। सुजन को देखते ही साधु महाराज उठकर बैठ गए और कहने लगे- ‘‘सुजन बेटे, तुम कहाँ जा रहे हो ?’’
साधु के मुँह से अपना नाम सुनकर वह चैंका, पर समझ गया कि ये पहुँचे हुए साधु हैं। सुजन ने अपनी राम कहानी सुना दी।
साधु सुजन की परीक्षा लेने के उद्देश्य से कहने लगे- ‘‘बेटा सुजन, मैं पिछले तीन दिनों से कुछ भी नहीं खाया हूँ। यदि यदि तुम अपने हिस्से की एक-दो रोटी दे देते, तो मेरे भी प्राण बच जाते।’’
सुजन ने उसी क्षण पोटली से दो रोटी और थोड़ा-सा गुड़ निकालकर साधु के सामने रख दिया। साधु प्रसन्न होकर कहने लगे- ‘‘बेटा, मेरे पास देने को कुछ भी नहीं हैं, किंतु मेरी दो बातों का सदा ख्याल रखना और जहाँ तक हो सके उनका पालन करना। भगवान तेरी अवश्य सुनेंगे। पहला- यथाशक्ति दुष्ट-जनों की भी सहायता करना और दूसरा- जो कुछ भी कमाओ उसमेेें से कुछ-ना-कुछ अवश्य दान करो।’’
सुजन ने दोनोें बातें मन में गाँठ कर लीं और वह आगे बढ़ गया। अभी थोड़ी दूर ही चला था कि एक पेड़ के नीचे चार-पाँच लोग बैठे दिखाई पड़े। शायद वे डाकू थे। सभी के पास बन्दूकें तथा तलवारें थीं। उन्हें देख सुजन के प्राण सूख गए। वह थर-थर काँपने लगा। इस पर डाकुओं के सरदार ने कहा- ‘‘राहगीर डरो मत ! हम तुम्हें मारेंगे नहीं। किंतु एक शर्त पर।’’
सुजन ने हाथ जोड़ते हुए पूछा- ‘‘क्या’’ ?
सरदार ने उसे कुछ पैसे देकर कहा- ‘‘पास में ही बस्ती है। तुम वहाँ जाकर हमारे लिए कुछ खाने का सामान ला दो।’’
सुजन सोचने लगा- ‘यह तो पाप है। मैं डाकुओें की सहायता क्योें करूँ।’
तभी उसे साधु की पहली बात याद आ गयी और वह राजी होकर गाँव की ओर खाने का सामान लेने चल पड़ा।
थोडी देर बाद जब वह लौटा तो वे सब नदारद थे। वह वहीं बैठकर डाकुओं की प्रतीक्षा करने लगा। तभी उसे पेड़ की डाल से बंधी एक पोटली दिखाई दी। वह पोटली उतार कर खोलने लगा। उसकी आँखें आश्चर्य से फैल गयीं। पोटली में सोने-चाँदी के जेवरात थे। साथ में एक पत्र भी था। वह पढ़ने लगा- ‘‘सुजन, तुम्हारे आने से पहले हमें जरूरी काम से जाना पड़ रहा है। इसलिए पत्र लिख रहे हैं। तुम पोटली के जेवरात ले जाना। यह तुम्हारी मजदूरी है।’’
सुजन ने मन ही मन साधु महाराज को धन्यवाद दिया और घर की ओर लौट पड़ा। वह खुशी के मारे उड़ा जा रहा था।
अभी वह अपने गाँव पहुँचने ही वाला था कि एक भिखारी उससे पोटली माँगने लगा। उसे पहले तो लोभ के भूत ने धमकाया पर साधु महाराज की दूसरी बात याद आते ही सुजन ने पोटली से एक सोने का कंगन निकालकर भिखारी दे दिया। प्रसन्न होकर वह बोला- ‘‘जीते रहो बेटा, तुम्हारा धन रोज-रोज बढ़ता रहे।’’
घर पहुँचते ही उसने सारी बातेें अपनी पत्नी को सुना दी। वह भी मन ही मन साधु महाराज को भगवान का अवतार मानकर प्रणाम करने लगी।
अब उसका धन सचमुच रोज-रोज बढ़ने लगा।
दुर्जन ने जब उसे अमीर होते देखा तो वह भी राज जानने के लिए अपनी पत्नी को सुजन के पास भेजा। सुजन ने अपनी भाभी को सब बातें सच-सच बता दीं।
सुजन भी दूसरे दिन साधु की तलाश में चल पड़ा। थोड़ी दूर चलते ही साधु महाराज भी मिल गए, किंतु दुर्जन से रोटी माँगने पर उसने रोटी नहीें दी और न ही उनकी बातें सुनी। वह तो शीघ्रातिशीघ्र डाकुओं के पास पहुँच कर इनाम लेना चाहता था।
थोड़ी ही देर में उसे वे डाकु भी मिल गए, किंतु जब वह खाने का सामान लेने नहीं गया और गाँव में उनका पता बता देने की धमकी देने लगा तो डाकुओं ने उसे खूब मारा।
अब दुर्जन के पास खाली हाथ लौटने के अलावा कोई चारा नहीं था।
डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़

111 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
अपनी पहचान को
अपनी पहचान को
Dr fauzia Naseem shad
इश्क़ में जूतियों का भी रहता है डर
इश्क़ में जूतियों का भी रहता है डर
आकाश महेशपुरी
"पतवार बन"
Dr. Kishan tandon kranti
तमाम उम्र काट दी है।
तमाम उम्र काट दी है।
Taj Mohammad
*****जीवन रंग*****
*****जीवन रंग*****
Kavita Chouhan
🥀 *गुरु चरणों की धूल*🥀
🥀 *गुरु चरणों की धूल*🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
लिखते रहिए ...
लिखते रहिए ...
Dheerja Sharma
कली को खिलने दो
कली को खिलने दो
Ghanshyam Poddar
वादे खिलाफी भी कर,
वादे खिलाफी भी कर,
Mahender Singh
तेरे बिछड़ने पर लिख रहा हूं ग़ज़ल की ये क़िताब,
तेरे बिछड़ने पर लिख रहा हूं ग़ज़ल की ये क़िताब,
Sahil Ahmad
ये 'लोग' हैं!
ये 'लोग' हैं!
Srishty Bansal
हमारे दौर में
हमारे दौर में
*Author प्रणय प्रभात*
'सवालात' ग़ज़ल
'सवालात' ग़ज़ल
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
"लोगों की सोच"
Yogendra Chaturwedi
दोहे
दोहे
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
महिमा है सतनाम की
महिमा है सतनाम की
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
3276.*पूर्णिका*
3276.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
जब आसमान पर बादल हों,
जब आसमान पर बादल हों,
Shweta Soni
विधवा
विधवा
Acharya Rama Nand Mandal
*चैत : 13 दोहे*
*चैत : 13 दोहे*
Ravi Prakash
तुम अगर कविता बनो तो, गीत मैं बन जाऊंगा।
तुम अगर कविता बनो तो, गीत मैं बन जाऊंगा।
जगदीश शर्मा सहज
पहले की भारतीय सेना
पहले की भारतीय सेना
Satish Srijan
*** बिंदु और परिधि....!!! ***
*** बिंदु और परिधि....!!! ***
VEDANTA PATEL
मध्यम वर्गीय परिवार ( किसान)
मध्यम वर्गीय परिवार ( किसान)
Nishant prakhar
टूटा हूँ इतना कि जुड़ने का मन नही करता,
टूटा हूँ इतना कि जुड़ने का मन नही करता,
Vishal babu (vishu)
हे नाथ कहो
हे नाथ कहो
Dr.Pratibha Prakash
💐प्रेम कौतुक-410💐
💐प्रेम कौतुक-410💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
फूल कभी भी बेजुबाॅ॑ नहीं होते
फूल कभी भी बेजुबाॅ॑ नहीं होते
VINOD CHAUHAN
अहंकार का एटम
अहंकार का एटम
डॉ०छोटेलाल सिंह 'मनमीत'
पसोपेश,,,उमेश के हाइकु
पसोपेश,,,उमेश के हाइकु
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
Loading...