ग़ज़ल/वो ख़ुद को ख़ुदा समझता है
बड़ा इतराता है वो ख़ुद को जाने क्या समझता है
मुझें लगता है कि वो ख़ुद को ख़ुदा समझता है
ये मशग़ला किस जहन्नुम में खदेड़ लाया है मुझें
उसके इक इल्ज़ाम को ये दिल बद्दुआ समझता है
क्या मुहब्बत में इज़हार करना भी गुनाह हो गया
मैंने इश्क़ किया है गुनाह नहीं सारा जहाँ समझता है
उसे भरम होगा कोई ,दिल भटक रहा होगा उसका
मेरा दोस्त मुझें पागल समझता है आवारा समझता है
~अजय अग्यार