#ग़ज़ल-44
वज़्न– 2122-1212-2212
राह काँटों भरी मिले चलना सदा
प्यार हँसके सफ़र से ही करना सदा/1
धूप हो छाँव हो नहीं रुकना कभी
आँख तू लक्ष्य पर लगा रखना सदा/2
आँधियाँ भी चलें तुफ़ां आएँ मगर
पर्वतों-सा खड़ा अचल रहना सदा/3
काम वो जो मिसाल ही बनके रहे
और तो हाथ का रहे मलना सदा/4
दूसरों को नहीं खुदी को सीख दो
देख फिर और का बने ढ़लना सदा/5
यार तू याद रोज आता है बहुत
ख़्वाब में ही सही मगर मिलना सदा/6
चूक जाए नहीं निशाना ये तेरा(तिरा)
बाज बनके उड़ान तू भरना सदा/7
यार प्रीतम मज़े करो मिलजुल यहाँ
टूटकर साख से न तू गिरना सदा/8
-आर.एस. “प्रीतम”