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20 Mar 2020 · 1 min read

ग़ज़ल:- पेड़ बड़ा हो इतराये…

पेड़ बड़ा हो इतराये।
देख जड़ों को शरमाये।।

अपनों से डर लगता है।
गैरों से कब घबराये।।

अक़्सर झुक कर चलते हम।
सर न फ़लक से टकराये।।

सागर सहम गया मुझसे।
थाह न मेरी मिल पाये।।

दीप बुझे न तूफानों से।
हाथ भले ही जल जाये।।

✍?By:-अरविंद राजपूत ‘कल्प’

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