ग़ज़ल:- पेड़ बड़ा हो इतराये…
पेड़ बड़ा हो इतराये।
देख जड़ों को शरमाये।।
अपनों से डर लगता है।
गैरों से कब घबराये।।
अक़्सर झुक कर चलते हम।
सर न फ़लक से टकराये।।
सागर सहम गया मुझसे।
थाह न मेरी मिल पाये।।
दीप बुझे न तूफानों से।
हाथ भले ही जल जाये।।
✍?By:-अरविंद राजपूत ‘कल्प’