ग़ज़ल ‘.. तुम संसार पढ़ लोगे..’
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असुवन तरल कतार बद्ध लड़ी मोतियन गढ़ लोगे
खुदाया प्यार हो जाये तुम्हे तो…. हार पढ़ लोगे
कभी चाँद निकला तो चांदनी भी निकल जाती है
खुले छत पे टहलते देख तुम बीमार पढ़ लोगे
दिलों को देकर दिलों को लिया जाता. .सुनो यारों
भरे हैं खत लिखे मुहब्बत से …व्यापार पढ़ लोगे
ख़ुशी थोड़ी; गुस्सा थोड़ा ; जरा खाना ;ज़रा गाना
अगर जानो इत्ती सी बात ; तुम संसार पढ़ लोगे
नज़र के सामने आँखे ‘ लबों पे लब लरज़ते हों
ग़ज़ल क्या है ‘किताबे इश्क़’के असआर पढ़ लोगे
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रजिंदर सिंह छाबड़ा