ग़ज़ल- जबसे तेरा ये प्यार पाया है
ग़ज़ल- जबसे तेरा ये प्यार पाया है
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जबसे तेरा ये प्यार पाया है
दिल ने चैनों करार पाया है
जाने कैसा सूरूर है छाया
जबसे तेरा दीदार पाया है
जिन्दगी जैसे खिल गई मेरी
जबसे बाहोँ का हार पाया है
जब भी रहता वो दूर नज़रोँ से
मैंने खुद को बीमार पाया है
पहला कहते हैं प्यार हम जिसको
बोलो कोई बिसार पाया है
जो था सपना वो आजकल देखो
मैंने वो बार बार पाया है
दिल में जबसे “आकाश” रहता वो
मैंने ग़म भी हजार पाया है
– आकाश महेशपुरी