ग़ज़ल क्या चीज़ होती है
ग़ज़ल क्या चीज़ होती है इसे मै ना समझ पाया।
ये होता काफ़िया क्या है बह्र कितना समझ पाया।।
न मतला ही समझ आया न मकता जानता हूँ मैं।
ये ऊला और सानी को मैं बस फ़सना समझ पाया।।
जो तुकबंदी लिखी मैंने समझ शाय़र लिया खुद़ को।
न सीखा हर्फ़ उर्दू का न ही कहना समझ पाया।।
समंदर में ग़ज़ल के जो कभी गोते लगाता हूं।
श़नावर हूँ सरोवर का न मैं तरना समझ पाया।।
लिखूंगा मैं ग़ज़ल एक दिन जो अब तू साथ है मेरे।
तू ही उस्ताद़ है मेरा मैं अब लिखना समझ पाया।।
पिरोये भाव दिल के सब ग़ज़ल हमने जो लिख डाली।
हुई जब आशिकी तुमसे ग़ज़ल रचना समझ पाया।।
समझ आई है अब हमको ग़ज़ल कैसे कही जाती।
इबाद़त है ख़ुदा की ‘कल्प’ ये इतना समझ पाया।।
✍? अरविंद राजपूत ‘कल्प’