ग़ज़ल।मौत को आज़माता जा रहा हूं ।
————————–ग़ज़ल—————————–
दर्द के क़ाबिल नही पर दर्द पाता जा रहा हूं ।
ऐ ख़ुदा तेरे प्यार में ग़म भुलाता जा रहा हूं ।।
इल्म दुनियां के सितम पर अब मुझे होने लगा ।
दर्द के नग़मे ख़ुसी में गुनगुनाता जा रहा हूं ।।
बंदिशों के बाद भी ये फँस गया कम्बख़्त दिल ।
हमवफ़ाई की सनक में दिल लगाता जा रहा हूं ।।
नासमझ हूं मैं या मेरा है जुनून ऐ इश्क बरपा ।
इश्क़ के हर मोड़ पर ज़ख़्म खाता जा रहा हूं ।।
दोगला इंसा जहाँ में बेवफ़ा खुदगर्ज़ निकला ।
पर वफ़ा में जिंदगी कोरी लुटाता जा रहा हूं ।।
देखकर रिस्तों में सौदा बिक रहा इंसान बेसक ।
लब्ज़ हैं ख़ामोश बस आंशू बहाता जा रहा हूं ।।
या ख़ुदा फैला अँधेरा लूटना लुटना मचा है ।।
देख दुनियां की हक़ीक़त मुस्कुराता जा रहा हूं ।।
हर जुबां ख़ंजर यहाँ रकमिश पुरानी धार है ।।
ज़िन्दगी पँर मौत को आजमाता जा रहा हूं ।
©राम केश मिश्र