ग़ज़ल।मेरा यार मुझसे जुदा हो रहा है ।
गजल/मेरा यार मुझसे ख़फ़ा जो रहा है ।
वज़्न- १२२-१२२-१२२-१२२
मेरा जख़्म फ़िर से रवां हो रहा है ।
मेरा यार मुझसे ख़फ़ा हो रहा है ।।
जिसे सब्र की राह मैने दिखाया ।
वही गैर पर अब फ़ना हो रहा है ।।
कभी आँख मे अश्क़ आये नही थे ।
सुरू दर्द का ज़लज़ला हो रहा है ।।
मुहब्बत मे मेरे बना था मसीहा ।
किसी गैर का वो ख़ुदा हो रहा है ।।
तिरा फ़ैसला दर्द देगा यक़ीनन ।
बड़े शौक़ से तू जुदा हो रहा है ।।
वफ़ाई तुम्हें रास आयी नही क्यों ।
वफ़ा था कभी बावफा हो रहा है ।।
न जा आज रकमिश बड़ी बेख़ुदी है ।
जरा पास हो तो दवा हो। रहा है ।।
राम केश मिश्र