{{ हक़ }}
दरमियाँ अब कुछ फासला ना रखा जाए
बहुत कहा है मैंने,, आज तुमसे भी कुछ
सुना जाए
पतझड़ का मौसम आ रहा है
दिल में इश्क़ का कुछ पल सुहाना रखा जाए
जाने क्यों सब तुझे मुझसे दूर करना चाहते हैं
क्यों न तुझे अपने पलकों में छुपा के रखा जाए
इश्क़ पर ज़माने का कोई ज़ोर ना हो
इसे थोड़ा महफूज़ रखा जाए
मेरे चेहरे का दीदार क्यों कोई और करे
इसपे सिर्फ तेरा ही हक़ रखा जाए
बहुत थक गई हूँ दुनिया के तानों से
क्या सो जाऊ तेरी आगोश में, सर तेरे
सीने पे रखा जाए
जो प्यास की तलब लगे हम दोनों को तो
तेरे लबों पे अपना लब रखा जाए