हौसला
बुझे हुए दिल के अरमा जगा भी नही सकता
किस के लिए ज़िन्दा हूँ बता भी नही सकता
हौसलो को परवाज़ अपने मैं हरदम चढ़ाता रहा
दिल के जूनून को हरगिज़ मिटा भी नही सकता
वो नादाँ है नादानियाँ उनके फ़ितरत में रही
क्या अब अपने जख़्म छुपा भी नही सकता
सहारा में चलते रहे फ़क्त छाँव के इंतज़ार में
इश्क की प्यास को अब बुझा भी नही सकता
सुना है अदावत पे बड़ा रश्क करते है सब
आशिक़ को अब यादो में बुला भी नही सकता
उनके हिस्से में आये है चार सू अश्क़ के कतरे
किसी के दिल को अब जला भी नही सकता
वो मासूमियत से बदलते है दिलो को अपने
आकिब”हाल-ए-दिल अब बता भी नही सकता
-आकिब जावेद