है कितना बेहतर जीवन मेरा(माँ)
है कितना बेहतर जीवन मेरा
पल पल मैं ये कहता हूँ
सुख है दुःख का पता नहीं
क्योंकि माँ की शरण में रहता हूँ
मिला मुझे जीवन में सब कुछ,मुझे कोई परवाह नहीं
धुल मिली माँ के चरणों की,मुझे कोई अब चाह नहीं
स्नेहभाव मुझको जो मिला,कीमत उसकी कैसे आँकू
बदले में ना कुछ दे पाया,शायद खुद में मैं झाँकू
माँ की रहमत खुदा से बढ़कर यही सोचता रहता हूँ
है कितना बेहतर जीवन मेरा…
मुश्किल भरा ये सारा जीवन सच्चाई से निकाला है
खुद रहकर भूखा माँ ने,शान से मुझको पाला है
मैंने जो भी पकड़ी राह ,चला मैं उस पे बेपरवाह
नाकाबिल था पर हुई हासिल,मेरी जीत थी माँ की चाह
राह बनाई माँ ने मेरी -2 मैं तो दरिया सा बहता हूँ…
है कितना बेहतर जीवन मेरा…
हरीश पटौदी
पटौदी
जिला गुरुग्राम