मंजिल!
है कंटक पथ सुनसान डगर,
सुगम सुपथ भी आएगा।
तू थाम ले संकरी पगडंडी,
मंजिल का रास्ता पाएगा।
है समय का ये संध्या पहर,
फिर रात्रिकाल भी आएगा।
तू मान इसे जीवन का पहर,
तिमिर भी प्रकाशित हो जाएगा।
दिन में सिर पर है सूर्य हस्त,
हर दृश्य नयन को भाएगा।
ले चंद्र देवता से आशीष,
आगे बढ़ ,गंतव्य को पायेगा।
दिखने लगेगा नभ में प्रकाश,
‘दीप’ जरूर जगमगायेगा।
आभार निशा, घोर तिमिर का कर
तू मंजिल को पा जाएगा।
-जारी
©कुल’दीप’ मिश्रा