!! हे लोकतंत्र !!
हे लोकतंत्र तुम मूक बधिर
इस देश के जन तेरे अधीर
वर्षों से सहे हैं लाखों तीर
कितनी है पीड़ा कितनी पीर
हर जन तुझको मैला करता
कोई न समझे तुझे गम्भीर
तेरा अंतर्मन दुःखी सा है
कोई यहां न सुखी सा है
तू सबकी नौका पार लगाता
हर कोई बस तुझको भुलाता
तू है जैसे बंधा जंजीर
हे लोकतंत्र तू मूक बधिर
इस देश के जन तेरे अधीर
!! आकाशवाणी !!