दोहे
दोहे
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०1
मैं नदिया के तट खड़ी,लिये नयन में नीर।
नदिया बोली मैं कहूँ,किससे अपनी पीर।।
०2
पथ -पथरीला है कठिन,करती नदिया पार।
सागर से मिलने चली,प्रेम नहीं व्यापार।।के B
०3
लहर ,लहर से कह रही,किस से करें गुहार।
सागर ऐसा बावरा,समझे ना री प्यार।।
०4
हूँ मैं सीप समुंद की,हृदय बसी है प्यास।
प्रेम प्रतीक्षा है प्रबल,स्वाति बूँद की आस ।।
०5
नयन सीप से झर रही,नेह स्वाति की बूँद।
नयन ,नयन से कह रहे ,नयना ले अब मूँद।।
०6
मौसम मन पर लिख गया,अगवानी के गीत।
रही रागिनी घोलती,मीठे स्वर में प्रीत।।
०7
ढूँढ़े से मिलता नहीं, प्रेम सुगंध समान।
प्रेम निमिष संयोग है,प्रेम नहीं अनुमान।।
०8
सभी बखाने बस यहाँ,अपनी -अपनी पीर।
दुनिया के दुःख जो दुखी,सच्चा वही कबीर।।
०9
मौसम की बदमाशियाँ, निशि -दिन के उत्पात।
कभी प्रेम से तर करे,कभी विरह के घात।।
1०
डूब -डूब कर डूबती,सागर प्रेम अथाह।
लहर -लहर तन खो गया,खुद ही खुद से ब्याह।।
डॉक्टर रागिनी शर्मा,
इन्दौर