बेटा…..
कहते हैं बेटियां
भाग्य से होती हैं।
पर बेटो के जन्म के लिए
दुआए की जाती हैं ।।
आज शर्मा जी के घर,
था अलग ही माहौल ।
आखिर मन्नतो के बाद
बेटा जो हुआ था ।।
शर्मा जी ने ऑफिस से छुट्टी ले,
होम टाउन पर घर को आये ।
ताकि बेटे की ख़ुशी,
सबसे बाँट पाए ।।
बड़ी बिटिया,
की ख़ुशी का न था ठिकाना ।
बस दिन भर खेलने,
का मिल जो गया खिलौना ।।
शर्माजी और उनकी पत्नी,
बड़े ही खुश थे ।
दिन भर बच्चो पर,
लाड लड़ाते ।।.
अब शर्माजी बच्चो को भी,
अपने साथ ले गए अनजान शहर ।
जहाँ न कोई था,
अपना रिश्तेदार. ।।
अब शर्मा जी तो थे
जाते रोज अपने ऑफिस ।
बच्चो और मिसेस
को बना अपने घर का बॉस ।।
उनको न थी,
कोई रिश्तो की समझ ।
सब खुद ही थे,
समझदार ।।
कुछ सालो में ,
शर्माजी आ गए ।
ट्रांसफर करवा के
अपने होम टाउन ।।
ताकि रिश्तो की डोर
वापस जुड़े रिश्तेदारों से ।
पर शर्माइन को कैसे उतारे,
अपने प्रतिष्ठा के अवतार से ।।
रिश्तो की डोर,
होती हैं नाजुक ।
यहाँ न चलती,
प्रतिष्ठा की चाबुक ।।
जैसे तैसे
समय बितता गया ।
बच्चो का ब्याह
अब था हो गया ।।
बेटी तो थी बड़ी ,
सब थी समझती ।
अपने घर को
बाँध लिया स्नेह की डोरी से. ।।
इधर बेटा भी था,
लगा हुआ अपने कामो में ।
घर और व्यापार ,
दोनों को साधने में ।।
पर घर पर भी,
द्वन्द कुछ काम ना था ।
महिला पक्ष,
हमेशा से ही बेचैन था ।।
बेटा कुछ भी,
कह न पाता ।
रिश्तो को बांधने की कोशिश में,
चुप रह जाता ।।
पर उसकी चुप्पी,
किसी को न भाती ।
घर पर उसकी हर रात ,
ख़ामोशी से घुटन संग मुश्किल में निकल पाती ।।
उसे समझने वाले,
उसे ही हमेशा समझा जाते।
घर के आगे,
व्यापार में भी अब दिमाग न लगा पाते ।।
माँ बाप को,
अब वो लायक न लगता ।
बहन को,
उसको व्यव्हार समझ न आता ।
पत्नी भी,
कुछ कुछ कहती रहती ।।
अब घर का हर कोई
हर जगह अपने ही घर की निंदा करता ।
अपने ही प्रतिष्ठा की,
ऐसी तैसी करता रहता ।।
पर बदलने को,
कोई तैयार न था.
पर बेटे के लिए,
कोई भी विकल्प न था ।।
मन मार के
चली जा रही जिंदगी ।
न घर चल रहा, न व्यापार ।
सच कहते हैं,
बेटे दुआओ से होते हैं ।
पर अंत में लोग,
बद्दुआएं भी उन्हें ही देते हैं ।।
डॉ. महेश कुमावत