हे राम!धरा पर आ जाओ
हे राम!धरा पर आ जाओ।
प्रभु राम अवध में आये हैं।
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हे राम ! तुम्हारी धरती जब-जब पीड़ा से अकुलायी है,
करुणा का सैलाब लिये स्वयं तुने अवतार लिया है ; उसी दया सागर की आज
डगमगाते नाव पर, क्रुद्ध, तूफानों का दिखता कड़ा प्रहार है ।
हे राम! धरा पर आ जाओ।
रचने वाले बिखर रहे हैं टुट रही हैं मर्यादाएं,
लुप्त होती परम्परा घुटन में संस्कृति एकाकी।बदमाशों का मस्तक उँचा, राम सरिके जीने वाले संदहों के घेरे में,
मूक देख रहे हैं नर-नारायण,विघ्न विनाशक
पातक हरता ।।
हे राम! धरा पर आ जाओ।
हे राम! तुम्हारी धरती बँट गयी टुकड़ों में, हर टुकड़े पर, मानव दानव बन कर, मर मिटने को आतुर है।
द्वंद,द्वेषऔर कपट का भाव भरा है रग-रग
में, जल रहे हैं दुश्मन, प्रज्वलित क्यों दीप हमारा इस भयानक आँधी में ?
हे राम! धरा पर आ जाओ।
कभी ठहाके, कभी गर्जना , कभी पर्चों की परचियां फाड़, कुर्सियाँ तोड़ी जाती हैं,
शब्दोंके तीखे बाण से सभ्यता भेदी जाती है,
लोकतंत्र के मंदिर में ऐसा तांडव मच जाता है। कोई सेंक सियासत की रोटी मन ही मन
इठलाता है, निर्धन का घर फूँक भी जाये, मेरा क्या जाता है ?
हे राम! धरा पर आ जाओ।
हे राम! देख वतन की ऐसी हालत रोते होंगे वीर सपूत फूट-फूट कर अंबर में,
क्या इसी लिये बलिदान दिये कई भारत माँ के बेटों ने?
चंद पिपासु नेताओं ने बाँट दिया
बापू-सावरकर, भुला दिया है वीर भगत सिंह,राजगुरु और सुखदेव की अमर कहानी।
हे राम ! तुम्हारी धरती आज पुन: अकुलाई है, सारे गीदड़ एकजुट हुए शेर पर शामत आई है ।
सद्गुणों का मान, हे राम! मर्यादा का नाम हे राम!
स्नेह सुधामें द्वेष घुला तुमने माँ कह कैकैई को गले लगाया,
करुणा का सैलाब लिये हे राम धरा पर आ जाव।
देखो! तपिश सूरज ने खो दीया यूं विह्वल बादल छाया है!
राम सरीखे राजा को उनका अधिकार दिलाना है ।।
जय श्रीराम 🙏🌹🙏
*मुक्ता रश्मि *