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25 Apr 2024 · 1 min read

ज़िंदगी का दस्तूर

सूरत ,दौलत , शौहरत ,
जब तक हैं उतना ही साथ है ,

वरना साथ का एहसास ,
बस कहने- सुनने की बात है ,

वक्त बदलते मरासिम भी बदल जाते हैं ,
ये तय बात है ,

फ़ितरत कब करवट ले कुछ पता नही चलता ,
इंसा की सीरत कब बदल जाए बस नही चलता ,

ज़िदगी मे कुछ ऐसे मरहले आते हैं,
जब हम तन्हा पड़ जाते हैं ,

गर्दिश में हों सितारे तो अपने भी
साथ छोड़ जाते हैं ,

ज़िंदगी की राह में हमसफ़र तो मिल जाते हैं ,
पर हम-नवा नही मिलता ,

अपनों की ख़ातिर कुर्बानी का
सिला भी नहीं मिलता ,

यही ज़िंदगी का दस्तूर है ,
सोचकर मायूस ना हो ,

अपने अख़लाक पर कायम रह ,
तेरा ज़मीर -ओ- ईमान बुलंद हो ,

हर सांस में इन्सानियत को ज़िंदा रख ,
रवाँ-दवाँ इस गर्दिश के सफ़र मे ,

मसरर्त की भी सहर होगी ,
जब ख़त्म होंगे ये तश्द्दुत के दिन ,

ख़िज़ाँ के ये दिन बदलेंगें ,
और हर सम्त फ़िज़ा में बहार होगी।

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