“हे माँ “
मौत के आगोश में,
जाने से पहले ,
तमन्ना है कि
बचपन की मस्तियों में
फिर से मशगूल हो जाऊं ,
उस उम्र में लौटना
तो नामुमकिन है अब ,
मगर, तेरी गोद में
सिर रख कर
मैं वही सुकून
पाना चाहता हूँ ।
मेरी नादान उम्र की
गुस्ताखियों को
सुधारती रही हो तुम
अपने प्यार से बार-बार ,
तेरे उसी प्यार के लिये ,
मैं वो नादानियाँ
दोहराना चाहता हूँ ।
बड़े ही लाड से
खिलाती रही हो,
तुम अपने हाथों से बने
पकवान मुझको,
आज फिर से तेरा
मैं वही लाड
देखना चाहता हूँ ।
मेरे रूठने पर
मनाती रही हो
बड़े ही दुलार से तुम,
मुझको
तेरे उसी दुलार के लिये ,
मैं फिर से
रूठना चाहता हूँ ।
बिना भूले,
मना लेना
उसी प्यार से मुझको,
क्यूँकि तुझसे रूठकर,
मैं ख़ुदा के पास भी
नहीं जाना चाहता हूँ ।
दर्शन कुमार वधवा , फ़रीदाबाद