हे मनुष्य बड़ा लोभी है तू
हे मनुष्य बड़ा लोभी है तू
वासना का भोगी है तू
धन का लालच कितना तुझमें
अरे बड़ा फरेबी है तू
मिथ्या अभिमान दिखावा खातिर
कितना बड़ा ढोंगी है तू
अपनी प्रशंसा स्वयं करता जाता
बहुत ही बड़बोली है तू
खुद की मनमान करता फिरता है
बड़ा ही मनमौजी है तू ।
-विष्णु प्रसाद ‘पाँचोटिया’