हे परमेश्वर -हे प्रभो!
हे परमेश्वर-हे प्रभो!
मन दिग्भ्रमित है,
समाधान करो,
मन मस्तिष्क में है मची ऊहापोह,
हे ईश्वर इस पर ध्यान धरो,
हे परमेश्वर-हे प्रभो,
मेरी शंकाओं को दूर करो,
मैं आया शरण तिहारी प्रभो,
हे परमेश्वर-हे प्रभो!
जीवन संगिनी मेरी,
है क्लांत ऐसे ही,
लगता उसको कुछ ऐसा ही,
नहीं परिवेश उसके जैसा ही,
हो रही उपेक्षा महसूस उसे,
मैं समझाऊं उसको कैसे,
हर प्राणी की अपनी जीवन शैली है,
मुझको लगता है यह अलबेली है,
नहीं ढाल वह अपने को पाती,
कसमसा कर हर बार रह जाती,
जब मैं कहता हूं उससे,
रहना होगा हमको अब वैसे,
रखना चाहें वह हमें जैसे,
पर वह मानने को तैयार नहीं,
खड़ी हुई है समस्या यही,
उसको यह सद्बुद्धि मिले
हर आशंका का समाधान बने,
हे परमेश्वर-हे प्रभो,
शरणागत हूं, ध्यान धरो!
यह यक्ष प्रश्न मेरे सम्मुख है,
इसका समाधान मेरा लक्ष्य है,
क्या पीढ़ियों का यह फर्क है,
या जीवन जीने का यह अपना तर्क है,
क्या मर्यादाएं हैं टूट रही,
या परंपरा हैं पीछे छूट गई,
कुछ ना कुछ तो यह नया -नया है,
जो हमको नहीं जच या भा रहा है,
मैं कैसे समझाऊं उन्हें अभी,
कैसे बतलाऊं उन्हें, अपनी बीती हुई कभी,
दिवास्वप्न सा उनको लगता है,
ऐसे भी हुआ होगा कभी,
उनको यह पचता नहीं है,
उन्हें भरोसा यह जगे,
थक-हारकर मैं यहां पर आया हूं,
तेरे दर पर आकर शीष नवाया हूं,
विपत्ति का मेरी कर दो निदान,
हे करुणा सिंधु-हे करुणा निधान,
मैं आया शरण तिहारी प्रभो,
मैं शरणागत हूं, ध्यान धरो,
हे परमेश्वर-हे प्रभो!