हे देश मेरे
हे देश मेरे महबूब है तू,
तुझसे मैं इश्क़ लगाया है।
तेरी खातिर कई बार लड़ा,
सरहद पर लहू बहाया है।
नदियों पर्वत से है प्यार मुझे,
वन लगते जिगरी यार मुझे।
खलिहान खेत में जब घूमूं,
बाहें फैलाये मैं झूमूँ।
आगोश में तेरे मस्त हुआ,
जब भी सागर लहराया है।
हे देश मेरे महबूब है तू,
तुझसे मैं इश्क़ लगाया है।
आरती स्तुती का गान बजे,
अरदास में सत श्री अकाल सजे।
मस्जिद में भोर अजान चले,
गिरजाघर मोम प्रकाश जले।
सबमें है दिखता नूर तेरा,
सबमे एक प्रेम समाया है।
हे देश मेरे महबूब है तू,
तुझसे मैं इश्क़ लगाया है।