*** हे दीप देव !!!
हे दीप देव !!!
हे दीप देव ! मन- मलिनता चूर करो ।।
अज्ञान रूपी मलेच्छ को अब दूर करो ।
हर घर का तुम क्लेश चकनाचूर करो ।
उपयोग फिर से निज का भरपूर करो ।।
कटुता, दुष्टता, मूर्खता सारे हाथ मलें ।
आप मग्न निज काज में सदा फूले-फलें ।।
दीप जले दीप जले घर-घर दीप जले ।
तिमिर भगाने को दीप जले नीम तले ।।
अंधकार को अग्नि जलाकर भस्म करो ।
दिए जलाकर अज्ञानता को नष्ट करो ।।
मानव को पुनः सुबुद्धि का प्रकाश दो ।
सत्-विचार, धर्म- सुकर्म की आस दो ।।
दीप रहित समूल धरती यह बेकार है ।
आप के बिना मेरे हृदय में अंधकार है ।।
आप लघु रूपी घर-घर का दिनेश हो ।
आप अंतिम आस जन-जन की शेष हो ।।
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दिनेश एल० “जैहिंद”
14. 06. 2017