हे दीपक!
हे दीपक!
तुम तिमिर दंश हरो।
क्रोध, मोह, लोभ, दंभ
घृणा – द्वेष, शापित- तन
अहं का प्रचण्ड – ताप
असमंजस हरो।
हे दीपक!
तुम तिमिर दंश हरो।
विस्मय, विराग – राग
धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष
अवगुण, सद्गुण सारे
बेकल – मन हरो।
हे दीपक!
तुम तिमिर दंश हरो।
धरा लाल, लाल – नेत्र
लाल ही कपाल- काल
क्षण – भंगुर जीवन – नृत्य
प्रीति – प्रेम हरो।
हे दीपक!
तुम तिमिर दंश हरो।
उज्जवल प्रकाश – पुंज
नव-चेतन, नवांकुर
परम, आवेश – वेग
आशाऐं सब हरो।
हे दीपक!
तुम तिमिर दंश हरो।
:अनिल कुमार श्रीवास्तव
29/04/2019