हे चन्द्रशेखर गंगमौलि
हे चन्द्रशेखर गंगमौलि
जगत के अभयंकर ।
सृष्टि के संचालक
जगकर्त्ता जगहर्त्ता ।
शरण में अपनी गहो
संयमन की सीख दो।
हे नीलकण्ठ महादेव
भूत पति उमापते ।
किया पावन सकल जग
निज कण्ठ गरल धार के ।
मुझको अभय दो
जगत के विष ज्वाल से ।
मोह के प्रवाल से ।
त्राहि त्राहि विश्वनाथ
जीवन की जड़ता से ।
पाहि पाहि हे शम्भो
मानसिक दुर्बलता से ।
थाम लो तुम हाथ मेरा
राह में संग संग चलो ।
हर हर हर महादेव
पाप सब जग से हरो ।
कोई शोक है नहीं
शरण में तेरी व्यापते ।
समाधि में आनन्द की
अशोक हो विराजते ।
कर कृपा तव भक्त पर
शरण में अपनी गहो ।
धी: मन शिव संयुक्त हो
सर्वत्र शिव अनुरक्ति हो।