हे कृष्ण रास अब बंद करो ..
बहुत खा चुके हो माखन, हे कृष्ण रास अब बंद करो ।
राधा की चुनरी छोड अरे, जननी को बंधनमुक्त करो ॥
यदि ये कदम्ब के पेड, महकते बाग, तुम्हारे अपने हैं ।
मथुरा में सहमे हुये, फूल कलियों के भी तो सपने हैं ॥
गोकुल का बचपन अभय हुआ जब पतित पूतना को मारा ।
पर कहां समर का अंत अभी जीवित शिशुओं का हत्यारा ॥
बृजभूमि तजो यशुदानंदन मथुरा में जाओ युद्ध करो ॥।
राधाकी चुनरी छोड अरे जननी को बंधन मुक्त करो ॥।
माना कि यशोदा का आंचल रो रोकर तुम्हें पुकारेगा ।
देवकी रही वंदी लेकिन तो विश्व तुम्हें धिक्कारेगा ॥
वाणासुर जरासंध जैसे कंसों का भार हटाना है ।
कुरुभूमिबीच अर्जुन को फिर गीता का पाठ पढाना है ॥
कंदुक का खेला खेल बहुत अब हाथ सुदर्शन चक्र धरो ।
राधाकी चुनरी छोड अरे जननी को बंधन मुक्त करो ॥
जहां दुशासन शकुनि और दुर्योधन करते मनमानी ।
अंधा है धृत्रराष्टृ, भीष्म हैं बिवश, द्रोण पानी पानी ॥
जहां नपुंशक बने हुये हैं भीम और अर्जुन योद्धा ।
कर दी जाति निर्वस्त्र जहां, अबला, वह कैसी वीर सभा ॥
पापी अभिमानी वीरों का यदुश्रेष्ठ उठो विद्ध्वंश करो ।
राधाकी चुनरी छोड अरे जननी को बंधन मुक्त करो ॥
जय श्री राधकृष्ण