हे कलमकार
हे कलमकार
कलमकार का काम नहीं है,
दो पैसों में बिक जाना।
कलमकार का काम नहीं है,
चार शब्द लिख रुक जाना।
लिखना बस लिखते ही जाना
बिन थकना बिन घबराना ।
जन जन की आवाजें लिखना
कलमकार का अफसाना ।
राजनीति के गलियारों में
कलमों को बिकते देखा।
हरे हरे नोटों के आगे
कलमों को झुकते देखा है।
कलम वही जो अंगारों पर
सीना चौड़ा कर लिखती।
कलम वही जो मजलूमों को
न्याय दिलाते ही दिखती।
कलम वही जो दीन दुखी के
मन की बातें कहती है।
कलम वही जो दुखियारों की
पीड़ा मन भर सहती है।
कलम नहीं जो राजनीति में
गीत प्रशंसा के गाए।
कलम नहीं जो न्याय छोड़ कर।
अन्यायों को अपनाए।
सत्य शब्द संकल्प भाव ही
कलमकार की थाती है।
निडर निराभय जीवट होती
कलमकार की छाती है।
कविता आज फँसी है प्यारे
मंचों के चुरफंदों में।
शील भाव शालीन खो गए
मंचों के मनचंदों में।
थोथे उथले भाव अधूरे
अश्लीली ताना बाना।
सम्मानों की होड़ मची है
सबको सब कुछ है पाना।
चबली चोर चकार सभी अब
कविताएँ मन भर लिखते।
चार शब्द चोरी के पढ़ते
मंचों पर अब वो सजते।
कुछ भी शब्दों में लिख देना
कविता सखे नहीं होती
खून निचुड़ कर शब्द बने जब
मन के घाव सखे धोती।
कविता शब्दों का जाल नहीं
ना भावों की उलझन है।
ना तुकबंदी का मिलना है
ना ही दिल की धड़कन है।
हरे भरे वन पर आरी है
जलते जंगल कविता है।
गिरते पत्तों की पीड़ा है
सूखी सूखी सरिता है।
कविता रिश्तों का बौनापन
जली देह की बेटी है।
बिकते ख्वाबों की दुनिया में
घुटती कविता लेटी है।
बेटे की आशा में आँखें
रिमझिम रिमझिम रोती हैं।
बसा विदेश अकेला बेटा
आँखें अब ना सोती हैं।
सरोकार जन जन के लिखना
ईश्वर को ही जपना है।
जन जन के हृदयों में बसना
कलमकार का सपना है।
भाव ओज सब सत्य समर्पित
कलमकार मन चंदन हो।
अभिव्यक्ति की दृढ़ता बाँधे
जीवन का अभिनंदन हो।
खरी कसौटी लेखन जिसका
जन जन की अभिव्यक्ति हो।
कालजयी हो कलम भवानी
जन जन की सम्पत्ति हो।
हो समाज को देने वाला
लेखन राष्ट्र समर्पित हो।
नयी दिशाएँ देने वाला
हर मन जिस पर गर्वित हो।
प्रेमचंद की भाषा लिखता
देवी के जो गीत लिखे।
पंत निराला के भावों सा
जिसमें सच्चा ओज दिखे।
कम ही हैं अब लेखक जिनकी
अभिव्यक्ति हो ओजमयी।
वो साहित्यिक नूर कहाँ अब
जिनका लेखन कालजयी।
सुशील शर्मा