हे करूणाकर
हे ! करूणाकर
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हे! करूणाकर दीनदयाल हरी,
सब भक्त तुम्हें नित सुमिरे हैं।
हे! करूणानिधि कृपा करिए,
सब नित अर्चन करते हैं।।
जब कष्ट पड़ा सब भक्तों पर,
सब प्रभु तुम्हारी बाट निहारें है।
आकर प्रभु कष्ट हरो सारे,
सब दीनदयाल पुकारते हैं।।
इस जीवन का कुछ मोल नहीं,
जिसने न प्रभु का नाम लिया।
वही मानुष भव पार हुआ,
जिसने प्रभु का गुणगान किया।।
प्रभु का जिसने नित नाम जपा,
उसका प्रभु ने उपकार किया।
मोह -माया को तज जिसने नित राम भजा,
उसको ही प्रभु ने भव सागर से पार किया।।
सुषमा सिंह*उर्मि,,
कानपुर