हे आदित्य
हे सूर्य देव ,
हे शक्ति पुंज ,
भीषण ज्वाला के कराल कुंज ,
हे सकल सृष्टि के आदि पुरुष ,
है नमन तुम्हें हे मार्तण्ड ,
हे प्रभाकर, सविता हे पतंग ,
विकराल अनल-सी दग्ध रश्मि ,
दिग दिगंत में ले चले तुरंग ।
अति तीव्र तपन के धारक तुम
अरि दलन के संहारक तुम
हे रवि , हे दिनकर ,भानु ,हंस
तुमसे जीवित है प्रकृति वंश
अब विपदा भू पर आन पड़ी
तुम ही जीवन की आस बड़ी
इस विषाणु का अब संहार करो
विकराल रश्मि से वार करो
हे अंशुमाली , भास्कर , मरीची
इस विपदा से उद्धार करो
अपनी सृष्टि से प्यार करो
अशोक सोनी ।