हॅंसना
हँसना भी एक अनाेखी ही कला है
यह सबके वश की बात कहाँ है
कुछ तो बिना किसी मतलब के भी
जाेर से ठहाका मार कर हँसता रहता
पर कुछ को ताे मजबूरी वश ही कभी
सामने वाले की इच्छा के सम्मान में
अपने मन काे मार कर जाेर जाेर से
औपचारिकता में हँसना पड़ता है
कहते हैं कि अगर किसी का अन्तर्मन
पूरी तरह ही व्यथा से घायल हो तो
लाख चाहने के बाद उनके होठों पर
हँसी की रेखा तक नजर नहीं आती
कुछ काे ताे पेट में जाेराें से हँसी आती
पर हाेठ तक आते आते उनकी हँसी
बीच रास्ते में ही कहीं दम ताेड़ जाती
लेकिन ऐसा भी है इस दुनिया में
जो अन्दर ही अन्दर अपने दुखाें से
इतना बुरी तरह से टूट चुका हाेता है
पर इसके बाद भी वह बात बात में
इतनी सरलता और सहजता से हँसता
सामने वाले को उनके गहरे जख्मों का
थाेडा़ सा भी अहसास नहीं हो पाता