हृदय पुलकित//मन भाव-विभोर*
*मैं नहीं देखूं
रुप रंग कालो कलूटों
मेरो तो बस महेंद्र अपनो,
सुपणा जैसो हकीकत सै,
मेरे मन नै भा गयो,
हिय पुलकित भयो,
कोण कहे कद मे छोटो सै,
मन भायो जुग भयो
मैंने सुण राखी सै,
.
सबन नदी और नारो,
सामुदर न तरसै सै,
सूरज को धरती तरसे,
मने पढ़ राखी सै,
.
प्रेम प्यार वा विरह रस,
सूक्ष्म तै सूक्ष्म
विराट फैले तै सिख सै,
सामुदर सबन को,
महेंद्र एक मेल-भा मिलावै सै,
.
डॉ महेन्द्र सिंह खालेटिया,
रेवाड़ी(हरियाणा).
एक क्षण मेरा हृदय,
प्रेम विरह रस में डूबकी लगा बैठा,
और शब्द मिले,