हृदय परिवर्तन
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हृदय परिवर्तन
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प्रेम में एक को दूसरे के प्रति
संवेदना पूर्ण
भावुकता की अनुभूति
अव्यक्त सी व्यक्त रहती है
आस्था के बीच खड़ी
सभी दीवार ढहती है,
यह कैसा प्रेम है ?
जो लालच और स्वार्थ के
दो पैरों पर चल रहा है
धोका -झूट -फरेब से
मासूम हृदय को छल रहा है
सामाजिक वर्जनाओं के मुख पर
मायूसी – हताशा की कालिख मल रहा है,
कैसे भूल सकता है वह
घर की शांत शालीन
सुखद हवा की महक
पिता के ह्रदय की कोमलता
माँ के मन की शीतलता
नैसर्गिक प्रेम के
रंगीन नन्हें पक्षियों की चहक
समीर के साथ बहती अपनेपन की महक
खुदगर्ज हो,
काट दो उन हांथो को
जिन्होंने उसे गोद में उठाया हो
बंद कर दो उन बोलों को
जिनसे लोरियां निकली हों
ठोकर मार दो उन आशाओं को
जिसने उसके अस्तित्व को बनाया हो
स्वार्थ सिद्धि के लिए प्रेम से
वह क्या पाएगा
उसका खुशहाल वर्तमान
अतीत में उसे रुलाएगा
स्मृति में होगा माँ के आँचल -पिता का साया
प्रेम एक का होगा उसके पास
बाकी संसार होगा खुदगर्ज पराया
हृदय परिवर्तन का यह प्रेम
उसे निराश करेगा
अजनबी सा दिखेगा जमाना , कदाचित !
न उसने किसी को सुना ही,
न ही खुद इसको जाना,
न ही नैसर्गिक प्रेम को परखा
और न ही प्रेम अनुभूति को पहचाना ।
– अवधेश सिंह