हृदय की बेचैनी
भाग्य ने ऐसी शिकस्त दी सुलझाए नहीं
सुलझती,
समय ने ऐसी शिकस्त दी सुलझाए नहीं
सुलझती।
लोग कहते हैं भाग्य से सब कुछ मिलता ,
यदि भाग्य ही दुर्भाग्य बन जाए तो कुछ कहते ही
नहीं बनता ।
हमने तो बचपन से ही धर्म को माना ,
धर्मराज न माने हमारा कसूर क्या ?
जीवन में अपनों का साथ चाहिए,
अपने ही न रहे हमारा क्या काम है।
यह समय का चक्र भी कितना विचित्र है!
कितना विचित्र है! हाय! कितना विचित्र है !
जिसने किसी को छोड़ा ही नही ,
चाहे वे ईश्वर हो या आम मानव।
मन में होती हलचल मन व्यथित हो उठता
टूट से जाते हम कुछ सूझ न पड़ता ,कुछ सूझ न
पड़ता ।
किंतु इस संसार का यह परम सत्य है ,
कितनी भी मुश्किल हो हमे जीना ही पड़ता है,
जीना ही पडता है।
अनामिका तिवारी “अन्नपूर्णा”✍️✍️