हृदय की पीर
??नमन मंच??
विषय…. आहत हृदय की पीर
**************************
देखता हूँ मै जिधर भी, कोलाहल औ क्रन्दन है।
धरा रक्त से सन रही, विलुप्त हुआ वृंदावन है।
मानवता चित्कार रही, मानव मन पाषाण हुआ-
मरणासन्न दयाभाव, सुगंध रहित अब चंदन है।।
—-स्वरचित, स्वप्रमाणित
✍️पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
वीरों को अश्रुपूरित नेत्रों से भावभीनी श्रद्धांजलि ??????