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27 Jul 2021 · 1 min read

हूँ मैं

आज खुद पर कुछ लिखने की इच्छा हुई ।
ये कुछ पंक्तियाँ मेरे जीवन के बारे में।

बुझी-बुझी सी जीवन मेरी ,
खुद भी अबूझ पहेली हु मैं ।

घर -द्वार और ताल- नहर नहर है पर,
खुद ही खुद की सहेली हूँ मैं।

आँखों में है आँसू सागर जितना ,
फिर भी सूर्य- सी अकेली हूँ मैं |

कोई न देखना चाहता जिसे,
धूलों में पड़ी चमेली हूँ मैं |

बुझी – बुझी सी जीवन मेरी
खुद भी अबूझ पहेली हूँ मैं।

यह कविता स्वरचित है तथा मेरी कल्पनाओं और मेरी जीवन पर आधारित हैं।
द्वारा-खुशबू खातून

Language: Hindi
7 Likes · 8 Comments · 430 Views
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