*हुस्न बिखरा लाजवाबी है नशा छाया*
हुस्न बिखरा लाजवाबी है नशा छाया
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हुस्न बिखरा लाजलाबी है नशा छाया,
शान ए शौकत नवाबी है नशा छाया।
कौन है जो भी समझ पाए इशारा वो,
शौख ए नखरा हिसाबी है नशा छाया।
नैन तीखे से नशीले है करें पागल,
चाल जैसे हो शराबी है नशा छाया।
होठ भीगे हो भरी लाली उगा सूरज,
गाल गोरे पर गुलाबी है नशा छाया।
होश खो दें देखने वाले झलक पड़ते,
ख्वाब ख्यालों में खराबी है नशा छाया।
खूब यौवन से लदी उभरी जवानी भी,
है चमक भी आफताबी है नशा छाया।
मौज मस्ती से भरा जीवन ये मनसीरत,
रूप निखरा माहताबी है नशा छाया।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)