हुई रात काली फलक पे सितार।
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हुई रात काली फलक पे सितार।
हृदय में बजे तब गमों के गिटार।
खुदा जानता है किये क्या गुनाह,
दबे पाँव आते चले गम हजार।
किया इश्क़ तुम से बहुत बेहिसाब,
पहन ली गले में कई जख्म हार।
नहीं हाथ में थी तुम्हारी लकीर,
दिया है तभी तू नजर से उतार।
सताती विरह वेदना उर विषाद,
विकल प्राण दुख से चुभे नित कटार।
हृदय में प्रणय प्रेम पीड़ा अथाह ,
सजल इन नयन से बहे नित्य धार।
बिना आत्मा का बचा है शरीर,
लगे साँस अब तो मुझे सिर्फ भार।
जले याद की नित नयन में चराग़,
तड़़प रूह की जिन्दगी की पुकार।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली