हिन्दी मेरे देश की आशा
हिन्दी मेरे देश की आशा
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हिन्दी मेरे देश की आशा
अंधकारमय घोर निराशा
हिंदुस्तान में बोली जाती
जन जन की है मातृभाषा
अभिव्यक्ति का है संप्रेषण
मीठी मीठी मधुरिम भाषा
नजर अंदाज होती जाए
बेगैरत को सहती भाषा
हिंदी सप्ताहिक पखवाड़ा
हिंदी एक दिवसीय भाषा
सार्वजनिक नकारी जाती
अतृप्त,अशांत है जिज्ञासा
सरकारी सहती अहवेलना
दूसरे दर्जे की है भाषा
हिन्द देश के हिन्दी वासी
प्रयोग करते अंग्रेजी भाषा
लापरवाही की हद तो देखो
अपनों में हुई बेगानी भाषा
आजादी के अनेक वर्ष बीते
नहीं बन सकी राष्ट्रीय भाषा
मनसीरत कब समझेंगे सारे
हिंदी ही है हमारी जनभाषा
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)