हिन्दी दिवस प्रयोजन
****हिन्दी दिवस प्रयोजन*****
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अक्सर हम हिन्दी दिवस पर,
या हिन्दी साप्ताहिक कार्यक्रम,
अपनी कविताओं, रचनाओं और,
पद्य गद्य की सारी विधाओं में,
निज भावनाओं को कर व्यक्त,
संगोष्ठियों, कवि सम्मेलनों में,
और प्रायोजित, आयोजित,
होने वाले कार्यक्रमों में,
करते हैं हम मिलकर बात,
वाद ,विवाद ,प्रतिवाद,संवाद,
हिन्दी भाषा के विकास की,
अब तक हुए तिरस्कार की,
अपमान और मान -सम्मान की,
उन्नति और अवनति, विनाश की,
मूल तत्वों और कारक प्रकाश की,
उदघोषण,औजस्वी,प्रभावी भाषण से,
मातृभाषा हिन्दी को हो जाती आशा,
दूर हो जाएगी उसकी घोर निराशा,
हो जाएगा अब उसका महाकल्याण,
पूरा हो जाएगा उसका देखा स्वप्न,
मिल जाएगा राष्ट्रीय भाषा का दर्जा,
शुरू हो जाएंगे सारे के सारे,
सरकारी और गैर सरकारी कार्य,
उसकी देवनागरी लिपि में,
हो जाएगा अंग्रेजी का प्रभुत्व समाप्त,
मिलेगा सौतेलापन से छुटकारा,
मिट जाएगा सारा अंधियारा,
रोशन हो जाएगा उसका तिरस्कृत मुख,
मिल जाएंगे सर्वस्व राजसी सुख,
सबकुछ होगा उसकी आँखों के सम्मुख,
लेकिन जैसे ही होता है साल में,
एक दिन या साप्ताहिक कार्यक्रम का
विसर्जन और कार्यक्रम समापन,
बुद्धिजीवी, शिक्षाविद,विद्वान,संरक्षक,
कर जाते है अपने अपने घर कूच,
छोड़ कर निज माँ बोली को अनाथ,
करके उसके प्रति वार्षिक विलाप,
तज यथास्थिति में उसे यूँ की यूँ,
आँखे झुकाकर,हो कर नतमस्तक
पूर्व की भांति बैठ जाती पैर पसार,
दयनीय,असहाय,निराशावादी सोच में,
एक उम्मीद और नवकिरण की आशा में,
कि शायद आगामी हिन्दी दिवस पर,
मनसीरत शायद मिल जाएंगें,
उसके सारे सुरक्षित सर्वाधिकार…..।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)